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अब मैं भी दलित हूँ !!!!!

पाठक नामा -
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भारत में एक महान कवि हुए है जिनका हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है बाबा अब्दुल रहीम खानखाना – उन्होंने ने समाज को शिक्षा देती हुयी अनेक रचनाएं की है उनके दोहे बहुत ही प्रसिद्ध हैं. उन्होंने एक दोहे में कहा है – ‘जो रहीम ओछो बढे तो तेतो इतराय | प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाय || अर्थात जिस प्रकार से शतरंज में पैदल सिपाही दूसरे खेमे में पहुँच कर सीधी चाल के बजाय उलटी सीधी सभी चाल चलने लगता है |

अपने प्रधान मंत्री पद के दावेदार का जिस स्तर का व्यवहार अपने विरोधियों के प्रति रहा है उसके बारे में अब यह सिद्ध ही होगया है जब उन्होंने अपने निजी फायदे के लिए अपने ३५-४० वर्षों के सार्वजनिक जीवन में पहली बार अपनी जाति और अपने वैवाहिक जीवन के बारे में घोषणा की है शादी तो एक नितांत निजता की बात है कोई बताये या न बताये लेकिन जाति तो एक ऐसा विषय है जो उसके नाम के साथ ही जुड़ा होता है परन्तु जब व्यक्ति क्षुद्र राजनीती के लिए इसका उपयोग करता है तो बहुत ही अजीब लगता है यही बात अपने प्रधान मंत्री पद के दावेदार नरेंद्र भाई ने २७२ + की योजना की अपनी नैय्या डोलती देख बाकी तीन चरणो के मतदान से पहले जाति का कार्ड चल ही दिया क्योंकि पूर्वांचल में दलित और पिछड़ा वर्ग का वोट अधिक है तो इस लिए उन्होंने अपने आप को ( नीच ) दलित जाति घोषित कर दिया वह भी झूंठ की चाशनी लगा कर क्योंकि नरेंद्र भाई की जाति ” मोड़ घांची” है घांची यानि कि तेल का व्यवसाय करने वाले संम्पन लोग. लेकिन इनके परिवार ने गुजरात में कभी भी तेल का व्यवसाय नहीं किया क्योंकि यह स्वयं बताते है कि इनके पिता श्री चाय की दूकान चलाते थे वैसे भी इनका ओरिजन भी राजस्थान से है यह मूल रूप से राजस्थान के निवासी है लगभग ५० वर्ष पहले इनका परिवार रोजी रोटी की तालाश में गुजरात आया था – सरकारी गज़ट के अनुसार मोड़ घांची (तेली) जाति दलित वर्ग में नहीं आती बल्कि यह जाति आर्थिक रूप से सक्षम जाति में ओ बी सी की श्रेणी में आती है इस लिए जब नरेंद्र भाई ने अपने राजनितिक लाभ के लिए एक सफ़ेद झूंठ बोल कर कि वह नीच जाति अर्थात दलित वर्ग के हैं. तथ्यों के अनुसार मोड़ घांची जाति भी गुजरात में उस समय शामिल की गई जब नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री बने थे – तो इस बात की निंदा तो होनी ही थी परिणाम स्वरूप चारों ओर थू थू हो रही है – समाचारों के अनुसार और टीवी रिपोटों को देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है देश के अगले प्रधान मंत्री अपने नरेंद्र भाई ही होंगे परन्तु जब उन्होंने यह झूंठ और फरेब से भरा हुआ जाति का कार्ड अगले तीन चरणो के मतदान को ध्यान में रखते हुए चल ही दिया है तो क्या पिछड़ा और दलित वर्ग, एक ऐसे व्यक्ति का विशवास करेगा जो केवल चुनाव जीतने के लिए शालीनता की सारी सीमाएं लांघ देता हो जो अपनी भाषा में कटाक्ष, झूंठ और व्यंग के अतिरिक्त और कुछ बोल ही नहीं सकता अपने झूंठ सच करने के लिए जैसे जब वह कहते है कि अब माँ-बेटे के सरकार चली जाएगी तो इस बात में कितना तथ्य है क्योंकि न तो माँ सरकार में है और न बेटा तो सरकार कहाँ से हो गई माँ बेटे कि लेकिन व जिस प्रकार डिजायनर कपड़ों की तरह अपनी जाति तक बदल लेता है तो क्या एक ऐसा व्यक्ति – देश की गंगा जमुनी सभ्यता को संरक्षित कर सकेगा जहां इतनी जातियां और बोली है – और जिस देश की चारो ओर की सीमाएं अनजाने खतरों से घिरी हुयी हैं ? हमें तो नहीं लगता कि देश की प्रबुद्ध जनता ऐसे व्यक्ति को मैंडेट देगी जो अब तक गुजरात में केवल हिन्दुत्त्व और पूंजीपतियों को ही संरक्षण देता रहा हो स्वयं फलता फूलता रहा हो , और शायद इसी लिए तमाम विपक्षी पार्टिया आपसी मतभेद भुला कर केवल एक एजेंडे पर एक मत है कि किसी भी प्रकार नरेंद्र भाई को प्रधान मंत्री बनने से रोकें. अब देखते है क्या होता है १६ मई का इन्तजार सब को है – जो भी होगा देश के भले के लिए ही होगा ऐसा हमारा विशवास है !! एस पी सिंह, मेरठ

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