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क्या वास्तव में अच्छे दिन आने वाले हैं ?

पाठक नामा -
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आज कल जब भी टीवी पर कोई भी कार्क्रम देख रहे हों तो बीच बीच में विज्ञापन आता रहता है कहीं कहीं कुछ युवतियों का समूह कहता है ” अच्छे दिन आने वाले है ” कहीं युआओं का समूह कहता है ” अच्छे दिन आने वाले है ” हम तो यह जानते हैं कि प्रत्येक रात के बाद जो सवेरा होता है वह दिन अच्छा ही होता है | वैसे तो रात दिन की गति का पहिया चलता ही रहता है ठीक उसी प्रकार से जैसे किसी फैक्ट्री की तीन शिफ्ट चलती है जिसमे वर्करों को घंटों के हिसाब से काम करना पड़ता और जिनको केवल दिन में ही काम मिलता है वह लोग प्रत्येक सुबह अपने काम की तलाश में निकलते है अगर भगवान की कृपा से दिहाड़ी लग गई तो ठीक वर्ना खाली हाथ ही घर लौटना पड़ता है -इसी रात दिन की गति को कबीर दास ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा है—

” चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोय |
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ||

लेकिन प्रत्येक व्यापारी छोटा हो या बड़ा उसका तो हर दिन अच्छा ही होता है साथ उसकी तो हर रात ही दिवाली होती है दूसरी ओर कर्मचारी है सरकारी या अर्ध-सरकारी उसका तो प्रत्येक दिन ही अच्छा होता है जब वह उपहार (रिश्वत) में मिले नोटों के साथ अपने घर पहुँचता तो बीबी और बच्चों के साथ ढेरों खुशियाँ बाटता है – लेकिन यह तो समझ से परे है कि अब और किसके लिए अच्छे दिन आने वाले है – अब कुछ भरम सा होने लगा है कि यह सब वर्तमान चुनाव चर्चा के विषय में ही है तो निश्चित ही यह राजनितिक पार्टियों के दिन अच्छे या बुरे होने को है ? लगभग १२८ वर्ष पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसने अभी वर्तमान में १० वर्ष शासन किया उसके लिए तो अब शायद अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं उसके लिए तो जीना भी मुश्किल हो जाएगा – दूसरी ओर अगर हम बात करे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की जिसकी स्थापना वर्ष १९२५ में जो लगभग ८९ वर्षो से अपनी राजनितिक शाखा के द्वारा सत्ता का सुख भोगने के लिए संघर्षरत है शायद वर्तमान में उसके लिए अच्छे दिन आने वाले है ! वह भी तब जब देश की प्रबुद्ध जनता अपने मत के द्वारा २७२ से अधिक संख्या में कमल वाले लोगों जित्वा दे तो बेचारे ८९ वर्षो से सत्ता के लिए संघर्षरत स्वयं सेवकों को भी सत्ता का कुछ तो सुख मिल जाएगा लेकिन अगर आंकड़ा २७२ से काम हुआ तो क्या होगा जब कि “अम्मा” “दीदी” और “बहनजी” ठेंगा दिखा चुकी हैं ? इस लिए अब तो १६ मई २०१४ का इन्तजार है जिसमे मालुम होगा कि किसके अच्छे दिन आने वाले हैं.

बाकी तो हम जैसे दिहाड़ी मजदूर के लिए कौन से अच्छे दिन आएंगे और कब आएंगे कौन बता सकता है – दिन निकलते ही कुआँ खोदना होगा और फिर पानी पीना होगा ? हमारे लिए कभी कोई अच्छा दिन आएगा क्या ? हम तो बस यही जानते है ” को नृप भवो हमें का हानि “!!!!

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