Menu
blogid : 2445 postid : 748797

किसी मंत्री की शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाना उचित नहीं है ?

पाठक नामा -
पाठक नामा -
  • 206 Posts
  • 722 Comments

क्या कभी किसी ने महान चिंतक कबीर की शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाये है या महर्षि वाल्मीकि की शिक्षा को लेकर कोई सवाल उठा है जिन्होंने एक पवित्र ग्रन्थ रामायण की रचना की थी ? इसलिए लोकतंत्र के प्रहरियों पर किसी भी प्रकार की शैक्षिक योग्यता पर ऊँगली उठाना उचित नहीं है | विश्व के सबसे विशाल इस लोकतांत्रिक देश में जनता अपने भाग्य विधाताओं का विधि सम्मत प्रक्रिया के अनुसार चुनाव करती है परन्तु फिर भी कानून की वैध धाराओं के होते हुए भी बहुतसे ऐसे व्यक्ति इस चुनाव में विजयी हो जाते है जिन पर अपराध की गंभीर धाराओं के वाद लंबित है यहां तक कि अपहरण से लेकर हत्याओं के दोषी भी भारतीय चुनाव की दोषपूर्ण प्रणाली के कारण देश की जनता उनपर विश्वाश करने को मजबूर हो जाती है और इस चुनावी समर में अपराधी भी वैतरणी पार हो ही जाते है इस लिए जब जनता ही अपने भाग्य विधाता चुनती है तो फिर उनकी शैक्षिक योग्यता या चारित्रिक शुद्धता पर किसी भी प्रकार का सवाल उठाना नैतिक और भारतीय संविधान के प्राविधानों की दृष्टि से उचित नहीं हो सकता और अगर कोई व्यक्ति ऐसे सवाल उठाता है तो वह लोकतंत्र के अपमान का अपराधी होना चाहिए इस लिए कार्य- कुशलता की कसौटी केवल उस व्यक्ति की कार्य पद्धति होनी चाहिए, जैसा की जदयु के अध्यक्ष ने भी कहा है और किसी भी व्यक्ति कि काबिलियत मापने का केवल यही पैमाना होता है | लेकिन यह तो लोकतंत्र के नाम पर बहुत ही बड़ा धब्बा है कि जिसको जनता की अदालत ने अपना भाग्य विधाता बनाने से इंकार कर दिया हो उस शख्शियत को केवल इस लिए मंत्री पद से उपकृत किया जाय क्योंकि वह मुँहबोली छोटी बहन है – किसी ऐसे देश में जहां शिक्षा की दशा पहले से ही लचर है एक नौशिखिये को देश की शिक्षा की कमान देना उचित नहीं है वह भी जब, जबकि उस व्यक्ति को जनता ने संसद का सदस्य चुनने से इंकार कर दिया हो ? लेकिन इस में कुछ भी नया नहीं है यह तो शासन करने की गुजरात माडल की कार्य शैली का एक नमूना ही है ? जहां दिग्गज और विद्द्वान व्यक्तियों की कतार वेटिंग लॉज की बाल्कनी में बैठ कर अपनी बारी का इन्तजार कर रहे है वहीँ नौशिखिये माल पुए खा रहे है ! अब देश के अच्छे दिन जब आएंगे तब आएंगे कुछ व्यक्तियों के लिए तो शायद यही अच्छे दिन हैं ? लेकिन लोकतंत्र से बड़ा कुछ भी नहीं है इसलिए किसी भी ऐसे व्यक्ति को मिनिस्टर बनाना (किसी भी विभाग का ) जिसको जनता ने नकार दिया हो तो क्या यह लोकतंत्र का अपमान नहीं है / चूँकि कोई भी व्यक्ति जबकि वह किसी भी सदन का सदस्य न हो उस व्यक्ति को मंत्री बनाना प्रधान मंत्री का विशेषाधिकार हो सकता है लेकिन उस व्यक्ति को छ; माह के अंदर आवश्यक रूप से किसी भी सदन का सदस्य बनाना आवश्यक होता है ? परन्तु कोई सा व्यक्ति जो राज्य सभा का सदस्य हो और चुनाव हार गया हो अर्थात जनता ने उसे नकार दिया हो नैतिक दृष्टि से उस व्यक्ति को मंत्री बनाना प्रधान-मंत्री का विशेषाधिकार कदापि नहीं हो सकता इस लिए इस पर सवाल उठना तो आवश्यक है ? चूँकि नई सरकार (मोदी-सरकार) का यह अविवेकपूर्ण फैसला जहां कानूनी प्रक्रियाओं की बाध्यता को सम्पूर्णता प्रदान करता हो वहीँ नैतिकता की सीमाओं का उलंघन तो करता ही है ? इसलिए पुरानी सरकारों के समान अगर नई सरकार भी उसी जोड़तोड़ की नैय्या पर सवार हो कर राज्य करेगी तो निश्चित ही अच्छे दिन तो आ ही गए है ? एस. पी. सिंह- मेरठ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh