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लोक-तंत्र का मंदिर (भारतीय संसद) कब पवित्र होगा ?

पाठक नामा -
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क्या यह महज एक संयोग भर है या विश्व समुदाय की कोई रणनीति जब संयुत राष्ट्र संघ के महासचिव ने भारत जैसे विशाल देश में हो रही महिलाओं के विरुद्ध कुछ छूट पुट अपराधिक और बलात्कार की घटनाओं पर चिंता प्रकट की है – परन्तु यह निरथर्क भी नहीं कही जा सकती क्योंकि भारत आज जहां विश्व की एक उभरती हुई हस्ती है और सबसे अधिक श्रमिक शक्ति का केंद्र और अपने खाद्यान, रक्षा उपकरणों एवं प्रौद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है वहीँ दूसरी ओर लोकतंत्र के नाम पर अपराधियों का भी बोलबाला है यहां तक की संसद में अपराधिक पृष्ठ भूमि के लोग पदार्पण कर चुके है शायद इस कारण विश्व संस्था का चिंतित होना उचित ही प्रतीत होता है !

एक स्वतन्त्र संस्था नेशनल इलेक्शन वाच (ए डी आर) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार वर्तमान सोलहवीं लोकसभा में 541 चुने हुए सांसदों में से 35 % सांसद अपराधिक पृष्ठभूमि के है जिनके विरुद्ध संगीन अपराधों के मुकदमे लंबित है | सबसे अधिक सत्ताधरी पार्टी के 281 में से 88 सदस्य यानिकि 35 प्रतिशत के विरुद्ध हत्या, बलात्कार, सहित अनेकों अपराधिक धाराओं में मुक़दमे लंबित है | कांग्रेस के 44 में से 8 दागी है यांकी 18 प्रतिशत | AIADMK के 37 में से 6 दागी है यांकी 16 % | TMC के 34 में से 7 दागी है यानि की 21 % लेकिन सबसे अधिक चौकाने वाली संख्या 83 % दागी शिवसेना के है 18 में से 15 | अब भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े सुसंस्कृत लोकतंत्र के लिए तो यह एक कलंक ही है जहां 35 प्रतिशत अपराधिक छवि के वो व्यक्ति है जो चुनावी वैतरणी पार करके संसद में घुस ही गए है जिनके विरुद्ध अपराधिक मुकदमे चल रहे है ? चूँकि देश में 2014 के चुनाव के बाद जिस प्रकार से अपराध हत्या और बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ रही है उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है और जनता के बीच यह सोंच कहीं न कही गहरी पैठ कर गई है और एक सन्देश भी जाता है कि जब अपराधी-हत्यारा-बलात्कारी चुनाव के द्वारा ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक निर्बाध रूप से चयनित हो जाता है और फिर क़ानून बनाने से लेकर हम पर राज करने में भी सक्षम है तो फिर डर किस बात का केवल चुनाव जितने के लिए धन और बाहुबल ही तो चाहिए ! और यही कारण है देश और प्रदेश में बढ़ रही अपराधिक गतिविधियों और बलात्कार की घटनाओं की तो जैसे बाढ़ सी आ गई है – इस लिए जनता को यह कहने से कोई नहीं रोक सकता कि हमारी पार्लियामेंट में अपराधी भी घुस गए है और कोई पसंद करे या न करे यह संसद पर एक कलंक के समान है ! क्योंकि जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव भारत में हो रही बलात्कार की घटनाओं पर असंतोष प्रकट करें तो भारत के लिए चिंता का विषय तो होना ही चाहिए ?
लकिन बहुत ही दुःख की बात है कि जब हमारे देश के प्रधान मंत्री संसद में यह कहें कि हम सर्वोच्च न्यायालय से यह कहेंगे कि वह ऐसे व्यवस्था करे कि अपराधी सांसदों के विरुद्ध चल रहे मुकदमों को एक वर्ष में निबटाए ? प्रधान मंत्री जी, आप संसद में पूर्ण बहुमत में है | कानून बनाने की सर्वोच्च संस्था संसद ही है इसलिए यह हैरानी वाली बात है कि आप एक वर्ष का इंतजार किस लिए और क्यों चाहते है – कमसेकम हत्या,बलात्कार के आरोपित सांसदों को तो आप केवल एक प्रस्ताव मात्र से ही संसद के बाहर कर सकते है अगर बाहर नहीं कर सकते तो निलंबित तो कर ही सकते है आपको पूरा देश धन्यवाद देगा – और निश्चित ही अपराधिक घटनाओं पर अंकुश भी लगेगा अगर इतना भी नहीं कर सकते तो आप अपनी पार्टी के दागी लोगों को मंत्री बनाने से परहेज तो कर ही सकते है ! क्योंकि जनता ने आपको बहुमत इस लिए दिया है की आपने जनता से गुड गवेर्नेश और सुशासन का वायदा किया था न की अपराधियों और हत्यारों बलात्कार के आरोपित व्यक्तियों को संरक्षण देने का ? एस पी सिंह – मेरठ

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