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भागवत अनंत भागवत कथा अनंता !!!!!

पाठक नामा -
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“हरि अनंत हरि कथा अनंता !” जिस प्रकार यह वाक्य अपने आप में ईश्वर की अनंत शक्ति और उसकी अनंत चर्चा को उधबोधित करता है ठीक उसी प्रकार शायद हिन्दुत्त्व के एकमेव पुरोधा को भी यही भान/ज्ञान/बोध हो गया है चूँकि उनका नाम भी “हरि” नाम का ही एक पर्यायवाची रूप मोहन जो है साथ में भागवत भी इसी लिए उनके लिए यही शब्द उपयुक्त होगा ” भगवत अनंत भगवत कथा अनंता ” उनका बार बार यह कहना कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र था और आगे भी हिन्दू राष्ट्र ही बनेगा/रहेगा भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति भी हिन्दू है ? यह बात समझ से परे है कि मोहन जी भागवत भारत को केवल हिन्दू राष्ट्र ही क्यों बनाने पर अड़े हुए है क्यों नहीं भारत के प्राचीन गौरव भरत के नाम पर इसको भारत वर्ष रहने देना चाहते और उसके सभी निवासियों को भारतीय बने रहने में उनको क्या ऐतराज है और क्यों ? भारत एक भिन्नताओं से भरपूर विभिन्न जातियों विभिन्न धर्मों को मानने वालो का देश है साथ ही हमारा संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता की बिना संविधान में संसोधन किये कोई देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप से खिलवाड़ कर सकता है – लेकिन अगर उन्हें भारत को हिन्दू राष्ट्र ही बनाना है तो संवैधानिक तरीका क्यों नहीं अपनाते : संघ द्वारा पुष्पित पल्लवित भाजपा की मोदी सरकार को क्यों नहीं एक आदेश देते कि संविधान में संसोधन करके भारत को एक हिन्दू राष्ट्र घोषित करे ? इस लिए भागवत जी कथा न बांच कर अपनी ताकत के बल पर संविधान में मनचाहा संसोधन करवा कर देश का नाम हिन्दू राष्ट्र करवा लेते – लेकिन वे ऐसा न करके केवल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के द्वारा समाज को बाटना चाहते है ? इसलिए हमें तो लगता है कि अगले दो तीन महीनो में होने वाले बहुत सी विधान सभाओं के निर्वाचन को ध्यान रख कर रा से सं ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का दांव खेल कर स्वयं अपनी साख भी दांव पर लगा ही दी है क्योंकि भाजप एक राजनितिक पार्टी होने के नाते ऐसा करने में मजबूर भी हो सकती है लेकिन आर एस एस और उसके अनुसांगिंक संघठन के लिए ऐसे कोई मजबूरी नहीं है ? भगवत यही नहीं रुके उन्होंने बाकी सभी साम्प्रदायों को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी – एक कदम और आगे जा कर उन्होंने यह भी कह दिया कि हिंदुत्व में सभी धर्मो को हजम ( समाप्त) करने की शक्ति है यानि की खुली चुनौती और ऐसा कह कर उन्होंने अपने ज्ञान का भंडार भी सिमित कर लिया क्योंकि भगवत जी को शायद यह याद नहीं रहा कि हिन्दू धर्म तो इतना उदार है की आज विश्व के कई देशो ने जो बौद्ध धर्म अपनाया है वह महात्मा बुद्ध एक भारतीय ही थे – जैन धर्म के प्रवर्तक भी भारतीय थे यहां तक सिख धर्म भी भारतीयों की ही देंन है! इस लिए मोहन जी को देश हित में अपनी अनंत भागवत कथा का अब अंत कर ही देना चाहिए ? क्योंकि शायद उनको सोते समय भारत का पुराना इतिहास जब याद आता होगा कि भारत /हिन्दुस्तान में मुश्लिम शासकों का शासन सैंकड़ों साल रहा है और अंग्रेजों सहित पुर्तगालियों लोगों ने भी दो सौ वर्षो से अधिक हमारे ऊपर शासन किया है तो बैचैन हो जाते होंगे जैसा कि एक कवि ने भी कहा है ” पराधीन सपनेहु सुख नाही ” ? इतिहास हमें गिरने उठने फिर गिरने और उठ कर तन कर खड़े होने और चलने की सीख देता है केवल जबानी तीर चला कर भड़ास निकलने की सीख नहीं देता – देश भक्ति केवल नारों द्वारा भड़ास निकलने से नहीं होती देश भक्ति मन में पैदा होती है और कर्मो/कर्तव्यों के द्वारा अभिव्यक्त होती है ! वैसे भी भागवत जी को कथा आरम्भ करने से पहले देश को यह बताना चाहिए कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी संस्था की भूमिका क्या थी कितने लोगो ने आंदोलन में भाग लिया था और कितने लोंगो ने पुलिस थानो से राजी नामा किया था ? उनकी बेचैनी का दूसरा सबब यह भी हो सकता है की मोदी जी ने जो चुनावी वायदे किये थे अभी १०० दिन से अधिक के शासन में महंगाई, भ्रष्टाचार , अपराध पर देश में अभी भी काबू नहीं पाया जा सका है अतः जनता का ध्यान इन पर से हटा कर उनके हाथ में हिन्दुत्त्व का झुनझुना क्यों न पकड़ा दिया जाय ! यही इस भगवत कथा का सार है ? एस पी सिंह / मेरठ

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