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पिछले चुनाव अभियान के दौरान अपने नरेंद्र भाई मोदी एक मीटिंग में किसी दार्शनिक के समान कहते हैं कि “मेरे हाथ में जो गिलास है इसमें पानी है जो आधा गिलास है, आप में से कितने हे इसे कहेंगे कि यह आधा खाली है , कोई कहस सकता है पूरा भरा हुआ नहीं है, कोई कह सकता है आधा भरा है ” मेरा (मोदी) भी यही कहना है कि व्यक्ति को निराशा वादी नहीं होना चाहिए इस लिए सकारात्मक सोंच के लिए यही सोचना चाहिए कि गिलास आधा भरा हुआ है ? बात आई गई हो गई और नरेन्द्र भाई मोदी अब देश के प्रधान मंत्री है और देश विदेश के दौरों पर दौड़ रहे है सबकुछ शीघ्र करदेने की जद्दो जहद में ? अभी तो हम बात करते है ताजा प्रकरण की – पांच दिन तक विभिन्न मोर्चों पर खूब धामा चौकड़ी जमाने के बाद ( मंदिर में पूजा / संगीत की तान/ नगाड़ों की धुन / दिन्दुत्तव का राग /बुलेट ट्रेन का सपना / परमाणु करार )
देश को सपेरों का देश के स्थान पर माऊस से खेलने वालों का देश बताने के बाद, (क्योंकि विदेश नीति की बाध्यता और विदेशी धरती पर जबान को सँभालने के स्थान पर ) जब वह थक गए तो आ ही गए अपने चिर परिचित अंदाज में और गीता (धार्मिक पुस्तक) भेंट करने के बाद वह बोले मैं आपको यह धार्मिक पुस्तक भेंट जो कर रहा हूँ उधर मेरे देश में सेकुलर लोगों के peट में दर्द हो रहा होगा और उनके pet में दर्द होना भी स्वाभाविक है क्योंकि उनके पास तो कोई काम नहीं है ऐसा कह कर वह विदेशियों को यह सन्देश देना चाहते है कि अब भारत में कोई विपक्ष है ही नहीं हम ही पहले विपक्ष थे अब सरकार में है ?
लेकिन वह यह नहीं बताना चाहते कि देश को जापान से क्या मिला : जो सहायता जापान देगा वह पांच वर्षो में पूरी होगी और शायद वह मोदी के सपनो कि बुलेट ट्रेन के रूप में ही होगी – लेकिन परमाणु संधि का क्या हुआ ? आज जापान दुनिया के विकसित देशो में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी है और हमें आज ऊर्चा कि सबसे अधिक ज़रूरत है ! क्योंकि मोदी सरकार की कोई विदेश नीति है ही नहीं इस लिए जापान ने अभी अपने पत्ते खोले ही नहीं क्योंकि जापान जनता है कि भारत का कटोरा न तो आधा भरा है और न आधा खाली है बल्कि पूरा खाली है ? क्योंकि जिस अमेरिका ने मिस्टर मोदी को अपने देश में एंट्री ही बंद कर दी थी और अब वह भारत की बदली हुयी परिस्थतियों का बाद भारत के प्रति कैसी नीति अपनाता है उसके बाद ही जापान कुछ कह सकेगा ? भले ही नरेंद्र भाई मोदी आज जापान से खली कटोरा लेकर वापस आ गए है लेकिन उन्हें विदेशी धरती पर सरकारी दौरे पर हिन्दुत्त्व के ढोल को पीटने का कोई हक़ नहीं है क्या यह उनके जापान दौरे के निराशा वादी रुख का चेहरा है कि उन्हें विदेशी धरती से देश में होने वाले चुनाव ही नजर आने लगे और छेड़ दिया हिंद्दुत्व का राग : क्योंकि नरेंद्र भाई मोदी आज देश के सिरमौर है वह देश के प्रधान मंत्री है भले ही वह भारतीय जनता पार्टी के नेता है लेकिन वह विदेश में ही नहीं पुरे विश्व में देश कि पूरी जनता के प्रतिनिधि है इस लिए हर समय चुनाव और हिन्दुत्त्व कि बात करना उचित नहीं अगर उनको हिन्दुत्त्व से इतना ही लगाव है और उसका ऋण उतारना चाहते है तो संविधान में एक संसोधन करके देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर ही देना चाहिए : ? एस पी सिंह, मेरठ
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