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मूर्खो के गाँव में समझदार व्यक्ति भी रहता था जिसका नाम था लाल बुझक्कड़ ( उसका वास्तिविक नाम तो लाल सिंह था क्योंकि गावं की सभी समस्याओं का हल वह बता दिया करता था इस लिए उसका नाम ही लाल बुझक्कड़ हो गया ) एक दिन, रात्रि के समय गावं के कच्चे रस्ते कोई अपने ऊँठ को लेकर गया, अत: प्रातः: लोगो ने जब देखा कि यह किस जानवर के पैर के निशान है तो कुछ समझ नही पाये क्योंकि उन्होंने कभी ऊँठ नहीं देखा था ? इस लिए सब मिल कर लाल बुझक्कड़ के पास गए तो लाल बुझक्कड़ भी अपने को बहुत गौरवान्वित समझने लगा फिर चारों और घूम घूम कर देखा कभी निचे बैठ कर कभी लेट कर कभी खड़े होकर फिर बहुत गंभीर हो कर लाल बुझक्कड़ जी बोले ” लाल बुझक्कड़ बूझिये और न बुझे कोय, पैर में चक्की बाँध कर हिरना कूड़ा कोय ||” अर्थ यह कि जब लाल बुझक्कड़ कि समझ में भी कुछ नहीं आया तो उसने भी कह दिया कि रात्रि में कोई हिरण अपने पैर में चक्की का पाट बांध कर कूदता फिरता रहा है जिसके निशान हैं ये ? गाँव के लोग भी खुश होकर अपने अपने घरों को लौट गए |
हम यह बात अपने परममित्र मुंशी इतवारी लाल को बता ही रहे थे कि वह हम पर भड़क गए और बोले – ” अबे ! सा…….. ठाकुर तू मुझे लाल बुझक्कड़ समझता है, क्या मैं तुझे लाल बुझक्कड़ जितना मुर्ख दिखता हूँ ? अबे !! में रिटायर्ड जरूर हूँ लेकिन टायर्ड नहीं हूँ , चाहो तो दो दो हाथ करलो ?”
हम बोले ” यार ! मुंशी, तुम तो बिना मतलब क्रोध कर रहे हो मेरा यह मतलब नहीं था ! मैं तो तुम्हारे से केवल यह जानना चाहता था कि अभी हमारे देश हमारे पडोसी देश चीन के प्रेजिडेंट शि जिंगपिन ने भारत में आकर हमारे प्रधान मंत्री के साथ विभिन्न क्षेत्रो में बारह समझौते किये हैं. मैं तो इस बारे में कुछ अधिक नहीं समझता तुम ही कुछ रौशनी डाल सकते हो तो बताओं !”
इस पर मुंशी जी बोले -” तो ऐसा बोलो ना पहेलियाँ क्यों बुझाए जा रहे हो !! सुनो; जितना मैं चीन को जनता हूँ वह मैं तुम्हे बताता हूँ, पहली बात यह कि चीन में लोकतंत्र केवल नाम मात्र के लिए है हमारे जैसा लोक तंत्र नहीं है, मानवाधिकार की बात न ही करो तो ठीक रहेगा ? हिंदी चीनी भाई भाई का नारा हम १९५० से सुनते आ रहे है, तिब्बत में चीन ने जो कुछ भी किया है वैसा दुनिया में कही नहीं हुआ है ? इसी दगा बाज चीन ने १९५० में भारत के साथ पंच शील नाम से एक समझौता किया था जिसका अर्थ सह अस्त्तित्व पडोसी के साथ मधुर सम्बन्ध एवं शांति पूर्वक सम्बन्ध ! इस समझौते के अंतर्गत भारत ने तिब्बत में भारत सरकार द्वारा सँचिलित टेलीग्राफ सर्विस चीन को सौंप दी थी| दूसरी बात यह कि चीन ने वर्ष १९५९ तिब्बत पर कब्जे के बाद वहां के शासक धर्मगुरु दलाई लामा को भागने पर मजबूर कर दिया अत तब से लेकर आज तक धर्मगुरु दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत में निर्वाषित जीवन जीने को मजबूर हैं. यह विस्तार वादी हवस का चीनी नजरिया है ! अपनी इसी विस्तारवादी नीति के कारण चीन ने वर्ष १९६२ में लदाख और नेफा से अपनी फौजों को भारत की सीमा में प्रवेश करके हजारों भारतीय सैनिकों का कत्ल किया जो विषम परिस्थितियों में केवल सीमा की चौकीदारी भर कर रहे थे क्योंकि भारतीय सैनिक जानते थे कि चीन के साथ उनका युद्ध कभी नहीं हो सकता क्यों कि चीन ने पंच शील समझौता किया हुआ था ? ” ———– ” संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में आखिर १९६२ में चीन को युद्ध विराम करना ही पड़ा और उसने एक काल्पनिक सीमा रेखा जो मैकमोहन रेखा कहलाती है वहां तक भारत कि सत्ता को स्वीकार कर लिया इस काल्पनिक सीमा रेखा को चीन ने वर्ष 1914 में ब्रिटेन के साथ हुए एक समझौते के अंतर्गत स्वीकार किया था ”
” चीन से व्यापार के विषय में अब कोई बात करना उचित है ही नहीं क्योंकि चीन द्वारा पिछले १५ वर्षो में भारत के लघु उद्द्योग को अपने देश द्वारा निर्मित सस्ती वस्तुओं के कारण समाप्त ही कर दिया है ” इतना ही नहीं पिछले दसक का चीन से व्यापार घाटा ४० बिलियन डॉलर से अधिक का है, जब कि चीन हमारे यहां अगले पांच वर्षो मकेवल २० बिलियन डॉलर का निवेश करेगा – यह कौन सा गोरखधंधा है समझ से परे है ” वैसे भी अभी हमारे देश में मेरठ( उ.प्र का एक शहर )जो दिल्ली से केवल ७२ किलो मीटर दूर है वहां तक रेल द्वारा पहुंचने के लिए एक्सप्रेस ट्रेन २.१५ घंटे लेती है और पैसेंजर ट्रेन ३ घंटे से अधिक का समय लेती है लगभग यही स्तिथि पुरे देश की रेल की गति की है फिर भी कोई व्यक्ति अपने सपने को पूरा करने के लिए देश में एक बुलेट ट्रेन चलाना चाहता हो जिसकी गति ३२० किलो मीटर हो तो ऐसा लगता है जैसे कोई व्यक्ति ऊँठ के मुँह में जीरा घुसेड़ने की कोशिश कर रहा हो मुंशी जी के यह सब कहने के बाद हम बोले – ” यार मुंशी ये सब तो हम भी जानते है, कुछ और प्रकाश डालो तो जाने :?”
इस पर मुंशी जो बोले : ” वाह ! बेटा अगर जानते थे तो पूँछ क्यों रहे थे ? – अब बात अगर ताजा प्रकरण कि करते हो तो सुनो ” चीनी शास क और नेता इतने चालाक है कि कोई उनकी मंशा जान ही नहीं सकता, अभी जो समझौते हुए है उससे पहले जब शि जिंगपिं नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात में साबरमती के तट पर झूला झूल रहे थे और ढोकला खा कर जो ढकोशला किया ठीक १९६२ में भी किया था जब चीनी प्रधान मंत्री नेहरू के साथ पंच शील के सिद्धांत पर बैठक कर रहे थे उधर चीनी सैनिक लद्दाख और नेफा में आक्रमण की तैयारी कर रहे थे – हमें तो इस बार भी शंका है क्योंकि जब दिल्ली में शि बैठक कर रहे थे और समझौतों पर सहमति बना रहे थे उधर चीनी सैनिक हमारी सीमा में घुसपैंठ कर रहे थे ! लेकिन दुःख तब होताहै जब पूर्ण बहुमत कि सरकार चलाने वाले प्रधान मंत्री बहुत ही मासूमियत से कहते है सीमा के निर्धारण के काम को शीघ्र होना चाहिए ? सीमा का निर्धारण मैकमोहन रेखा है केवल उसकी निशान देहि होनी है जो आज तक किसी सरकार ने नहीं की है ! इस लिए वर्तमान प्रधान मंत्री को चाहिए कि वह दृढ़ता पूर्वक भारत कि बात को आगे रखे और मैकमोहन सीमा का निर्धारण कहाँ और किस प्रकार हो यह सुनिश्चित करना ही होगा ?” इस लिए सरकार और प्रधान मंत्री को देश को यह बताना ही होगा कि ब्रटिश भारत थे 1914 जो संधि की थी जिसमे “मैकमोहन रेखा को सीमा रेखा माना था आखिर वह मैकमोहन रेखा कौन सी और कहाँ है ?”
“कूटनीतिज्ञों का यह कहना की (मिस्टर अकबरुद्दीन प्रवक्ता विदेश विभाग ) जो लोग कूटनित नहीं जानते उन्हें चीन की घुसपैठ पर नहीं बोलना चाहिए क्या ऐसा कह कर वह जनता को गुमराह करना चाहते है ? उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि आज चीन में शी जिनपिंग ही देश के सर्वे सर्वा है वह केंद्रीय पोलित ब्यूरो स्टेंडिंग कमेटी, केंद्रीय सैन्य आयोग,एवं सरकार के मुखिया है और जब वह भारत का सरकारी दौरा कर रहे थे तो क्या सैना उनके नियंत्रण में नहीं थी – नहीं ऐसा नहीं है वह चीन की एक रणनीतिक चाल के अंतर्गत ही सीमा पर कार्यवाही कर रही थी और आज भी कर रही है !” “क्योंकि चीन आज अपनी सैन्य शक्ति और अर्थ व्यवस्था के (चीन निर्मित वस्तुए आज दुनिया के हर देश में उपलब्ध है ) कारण भारत के नेताओं , वैज्ञानिको के भारत के विकास के दावों को खोखला समझता है | वह यह भी चाहता है कि उसके (चीन) अतिरिक्त कोई और देश भारत से किसी भी क्षेत्र में कोई समझौता करे ही नहीं और इसी रणनीति के कारण वह हमेशा ही सीमा विवाद में भारत को उलझा कर युद्ध का हव्वा दिखता ही रहेगा जिससे कोई भी देश स्वत: इधर का रुख न करे” दूसरी और पाकिस्तान को मदद देकर एक पडोसी को दुश्मन बना कर हमेशा खड़ा रखेगा अब अगर हमारे देश के अतिउत्साही , नौसिखए नेतृत्त्व को यह बात समझ में नहीं आती तो मै मुंशी इतवारी लाल क्या कर सकता हूँ अब तो जो कुछ भी करेगा चीन करेगा या भगवान करेगा ” इतना कहकर मुंशी जी निढाल से हो गए हमने उन्हें दुबारा से चाय नास्ता कराया और सोंचने लगे कि हमारे देश के नेतृत्त्व को क्या हो गया है जिसे केवल प्रगति का रास्ता खोजने और उस पर चलने के लिए इतनी छटपटाहट उतावलापण आखिर क्योंकर है NDA शासन काल में जब जार्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री थे तो उन्होंने कहा था हमें पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं है बल्कि वास्तविक खतरा चीन से है अब अगर यह बात एक तत्कालीन रक्षा मंत्री ने कही थी तो यह किसी न किसी आधार/ सबूत पर ही आधारित होगी ही परन्तु हैरानी की बात यह है कि NDA के ताजा संस्करण वाली सरकार जो किसी अनहोनी बात और चीन जैसे दोगले देश कि मंशा का आभास तो दूर उस पर विचार करने को भी समय नहीं है ? प्रस्तुत करता — एस पी सिंह, मेरठ
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