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काला धन कितना काला !

पाठक नामा -
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स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत में गणतंत्र को अपनाया तो उसका आशय ही यही था कि भारतीय जनता को स्वयं शासन करने का अधिकार लेकिन उसके लिए हर कोई शासक बन नहीं सकता था इस लिए विभिन्न इकाईयों द्वारा सत्ता का विकेंद्रीकरण का मार्ग अपनाया गया जिसमे सर्वोच्च तो संसद (पार्लियामेंट राज्य सभा एवं लोकसभा ) का गठन केंद्रीय स्तर पर और राज्यों के लिए विधान सभा और विधान परिषद की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया गया ! लेकिन इन सब स्तरों पर जो लोकतंत्र के नाम पर लूट घसोट का वातावरण देश में पिछले दशकों में चर्चा में रहा था और 2004 से जब से कांग्रेस नीत सरकार सत्ता में आई तभी से विरोधी पक्षों द्वारा संसद से लेकर सड़क के नुक्कड़ तक यह चर्चा चारों ओर फ़ैल रही थी लेकिन 2009 से लेकर 2014 तक यह चरम तक पहुँच गई जिसमे व्हिसिल ब्लोअर से लेकर वाच डॉग कहे जाने वाले सरकारी तंत्र ने भी इसमें शामिल होकर आग में घी का काम किया जिससे प्रचार अपने चरम तक पहुँच गया। परन्तु सत्ता प्राप्ति के लिए जिस प्रकार का प्रचार श्री नरेंद्र मोदी ने सितम्बर 2013 से लेकर 2014 के चुनाव प्रक्रिया के दौरान किया उसकी मिसाल मिलना असंभव ही है। धुआंधार प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के प्रत्यासी नरेंद्र मोदी ने अपनी सभी चुनाव सभाओं में काले धन को विदेशों से वापस लेकर सभी देशवासियों में तीन लाख रुपया प्रति व्यक्ति वितरित करने के दावे किये थे !
इसी प्रकार का आक्रम प्रचार बाबा रामदेव ने भी किया था और उन्होंने ने दावा किया था कि विदेशों में भारत के नागरिकों द्वारा जमा किया गया काला धन लगभग चार लाख हजार करोड़ रुपया अगर वापस आएगा तो प्रत्येक भारतीय नागरिक को 15 लाख रूपये मिल जायंगे। अब सौभाग्य या दुर्भाग्य कुछ भी कहो। वर्तमान में उस समय के प्रचार कर्ता अब भारत सरकार के मुखिया है और काले धन के विरुद्ध अलख जगाने वाले अब सरकार के समर्थक है लेकिन विडंबना यह है कि सरकार के हाथ खाली है जो कुछ सूचनाये इधर उधर से एकत्र भी हुयी थी उनको सार्वजनिक करने में पिछली सरकार की भांति वर्तमान सरकार भी गोपनीयता क़ानून और विदेशों से किये गए समझौतों की आड़ में नाम उजागर करने से कतराने लगी है परन्तु भला हो लोकतंत्र के तीसरे स्तम्भ न्यायपालिका का जिसने सरकार को फटकार लगाते हुए काले धन को उजागर करने और वापस लाने के लिए सारा कार्य अपने आधीन कर लिया है। और अब आशा की एक किरण सी दिखाई दी है कि भले ही किसी भी नागरिक को एक पैसा भी न मिले परन्तु अगर काला धन देश में वापस आएगा तो उससे देश की अर्थव्यस्था में सुधार के साथ साथ नागरिक सुविधाओं में वृद्धि की आश भी बंधेगी। लेकिन अभी भी लाख टके का सवाल तो यह है कि बहुत सारे उपाय करने के बाद भी सरकार के हाथ खाली हैं क्योंकि सरकार के पास कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं है कि कितना धन विदेशों में जमा है। और उसमे से कितना काला धन है। लेकिन सोशल साइट पर उपलब्ध आंकड़ों के सनुसार अनुमानित 466 बिलियन डॉलर से 1.4 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकता। अब भी एक प्रश्न अनुत्तरित ही है कि देश में जो काला धन उपलब्ध है उसको काबू करने के लिए सरकार क्या कर रही है। अपने 40 वर्ष के कर विभाग के अनुभव के अनुसार हमें यह कहने में अब कोई संकोच नहीं है कि देश में काले धन के स्रोत कहाँ से निकते है।
भारत का वर्तमान पुलिस तंत्र अंग्रेजों के द्वारा स्थापित किया गया था और उसकी मानसिकता में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है केवल एक परिवर्तन हुआ है पहले पुलिस तंत्र अंग्रेजों के प्रति उत्तरदायी था लेकिन अंग्रेजों के जाने बाद क्योंकि सरकार की पकड़ पुलिस तंत्र पर न के बराबर है कारण यह है कि अब अंग्रेजों का स्थान चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में आ गया है जिससे दोनों मिलकर भ्रष्ट से भ्रष्टतम बनाने में एक दूसरे का सहयोग करते है। पुलिस तंत्र को अंग्रेजों ने इस प्रकार से विकसित किया था कि समाज में होने वाली किसी भी संदिघ्त गतिविधि को अपने मुखबिर/इनफॉर्मर के द्वारा झपकते ही आजभी प्राप्त कर लेती है । परन्तु पुलिस अपने भ्रष्ट आचरण के कारण घटना रोकने के स्थान पर केवल अपना हिस्सा वसूल करके आगे कमाई के साधन के रूप में जारी रखती है। आज जितना भी अवैध कारोबार , सड़कों के किनारे हाकरों के द्वारा अतिक्रमण / कब्जा अवैध ट्रांसपोर्ट व्यापार सब पुलिस के संरक्षण में चलता है। ;पुलिस के बड़े अधिकारी बेबस है छापेमारी और आदेश के जारी करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कार पाते।
अब अगर बात करें राज्य सरकारों के आधीन दूसरे विभागों की तो एक से बढ़ कर काले धन को पैदा करने के स्रोत है। परन्तु देश में सबसे अधिक काले धन का स्रोत रियाल स्टेट का धंधा है। केंद्र सरकार के अधीन विभागों में जहां सलरीकरण और पारदर्शिता को अपनाया गया है ८० प्रतिशत से अधिक कार्य अब ऑनलाइन होने पर भी अभी भी भ्रष्टाचार पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लग सका है। और अब इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल है की हमारे देश में पैदा होने वाला काला धन कभी बाहर आ सकेगा ? कारण यह है कि हमारे राजनेता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अलख जगाने वाले स्वयं इस जंजाल में लिप्त हो जाते है ? जैसे कि अभी जिन तीन धन कुबेरों के नाम उजागर किये गए है उनमे से एक ग्रुप ने वर्तमान सरकारी पार्टी के खाते में 1.8 करोड़ रुपया और पिछली सत्ताधारी पार्टी को 65 लाख रूपये दिए थे। और अगर सभी नाम उजागर हो गए तो यह आंकड़ा अरबो रूपये में होगा। वैसे भी अभी हाल में संपन्न हुए चुनाओं में धुआंधार प्रचार में अरबों रुपया पानी की तरह बहाया गया है | क्या उसका स्रोत काला धन नहीं था ?
विगत में सरकारों ने बेबस होकर काले धन रखने वाले धनकुबेरों को काला धन सफ़ेद करने के कई अवसर प्रदान किये थे जब आयकर विभाग द्वारा वालंटरी डिस्क्लोज़र स्कीम (स्वयं घोषित आय )लागु की थी।परन्तु काले धन की काली नदी में निरंतर दुगने आवेग से काले धन की धारा बहाने लगी है। चाहे अल्पमत की कमजोर सरकार हो या फिर पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार हो किसी की भी हिम्मत नहीं है की वह काले धन के स्रोत बंद कर सके। यह केवल और केवल नैतिकता के बल पर ही हो सकता भ्रष्टाचार के विरुद्ध श्री अन्ना हजारे को एक अवसर मिला था परन्तु चाटुकारों ने उस आंदोलन की शिशु अवस्था में ही ह्त्या कर दी थी | एस पी सिंह , मेरठ।

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