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दर्द और शर्म का रिश्ता ?

पाठक नामा -
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दर्द और शर्म दोनों में ही ढाई ढाई अक्षरों का पहाड़ है मेरा मतलब है अक्षरों की संख्या है जैसे पिद्दी न पिद्दी का शोरबा । अब यह कोई गूढ़ अर्थ तो है नहीं की किसी की समझ में ही ना आये ? फिर भी जो समझ जाए ठीक ना समझे तो भी ठीक हमने कोई ठेका तो लिया नहीं की सब को समझाए ? अब चूँकि दर्द और शर्म का रिश्ता ही ऐसा है की हम क्या कहें खुद ही निर्णय कर लिजिए ! एक आधुनिक शहर स्मार्ट सिटी बनने की दौड़ में ! एक व्यक्ति सड़क पर चलते चलते अपना पेट पकड़ कर बैठ गया राह चलते लोग भी रुक गए और उस व्यक्ति की सेवा चिकत्सा करने की चेष्टा में अपने अपने सुझाव देने लगे । किसी ने कहा कि एम्बुलैंस बुलाओ किसी ने कहा सामने डॉक्टर के यहाँ ले चलो किसी कहा की यह व्यक्ति शायद गूंगा है! किसी ने कहा की हो सकता है की यह कोई आत्मघाती उग्रवादी हो ! कुछ बोल ही नहीं रहा है ?
तभी वह व्यक्ति तड़प के बोला अरे! भाई लोगो न तो मैं बीमार हूँ न आत्मघाती हूँ मैं तो दीर्घ शंका से ग्रसित ! कोई मुझे बताये की यहाँ संडास कहाँ है ? संडास लोगो ने अट्टाहस् लगाया और बोले बस इत्ती दी बात संडास यहाँ से आधा किलोमीटर दूर है ? वह व्यक्ति बोला तो ठीक है सारी शर्म छोड़ के सबकुछ यही किये देता हूँ! तभी किसी व्यक्ति ने कहा अरे भाई शर्म न छोडो चलो मेरे घर चलो मैं तुम्हारी समस्या का समाधान कराता हूँ।

अभी। 15 दिनों से हम विज्ञानं के चमत्कार बुद्धू बक्से टी वी पर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में हो रहे घमासान को लाइव देख रहे थे और कुछ भी न समझ पा रहे थे की इन सभ्रांत से दिखने वाले लोगों को क्या हो गया ? लेकिन एक। चीज हमें स्पस्ट दिख रही थी कि एक महिला नेत्री बार बार अपनी बात कहने के लिए प्रयास करती और कभी हाथ जोड़ती और कभी अपना पेट पकड़ कर बैठ जाया करती ! चूँकि पहले पैरे में वर्णित घटना के हम चश्मदीद हैं इस लिए ईस बात से तो हम निश्चय ही संतुष्ठ थे की उनको ऐसे कोई समस्या नहीं है ? परन्तु उनका बार बार पेट पकड़ कर बैठ जाना निश्चित ही इस बात का खुलासा कर रहा था की उनको दर्द अवश्य ही हो रहा था यह दर्द कैसा था कौन बता सकता है जब तक वह स्वयं ही अपने मुख से ना बोले फिर आज एक समय भी आया जब उनको बोले का समय मिला लेकिन सुनकर निराशा ही हुई क्योंकि जिस बात को कहने के लिए पिछले 15 दिनों से उनके पेट में दर्द हो रहा था उस बात को सुन कर ऐसा लगा की इसमें कुछ भी नया नहीं है ? वह एक स्थान पर कहती है की मैंने कुछ भी अनैतिक नहीं किया केवल एक महिला की मानवीय आधार पर सहायता की थी ? अगर संसद को यह अनैतिक लगता है तो मैं अपराधी हूँ? अब इस बात को संसद ही तय करेगी कि क्या नैतिक है और क्या अनैतिक है ?

लेकिन एक बात हम निश्चय ही जानते है की इन आदरणीय नेत्री जी को शर्म और दर्द का रोग पुराना है वर्ष 2004 में भी इनको इस बात की शर्म ने उद्देलित कर दिया था की संसद में एक विदेशी मूल के व्यक्तिव को प्रधान मंत्री बंनाने की तैयारी हो चुकी थी परंतु शायद आदरणीय नेत्री की स्वयं सन्यासिन बन जाने की घोषणा के कारण ऐसा नहीं हो सका ? लेकिन हमारी समझ में आज तक यह नहीं आया की आदरणीय नेत्री जी को कब शर्म आती है और कब दर्द होता ! क्या एक मंत्री के रूप में संविधान में वर्णित सपथ लेने के बाद भी कोई व्यस्ति व्यक्तिगत रिश्तों को निभाने के लिए सपथ का उल्लंघन कर सकता है और इस उल्लंघन की कोई सजा है अगर है तो क्या ? क्या मानवीय आधार पर हुए दर्द के कारण कोई व्यक्ति संविधान में वर्णित सपथ का भी उल्लंघन कर सकता है जैसा हमने आज टी वी पर देखा की मंत्री जी ने बहुत ही दिलेरी से घुमा फिरा कर अपने अपराध् को स्वीकार तो किया परंतु त्यागपत्र की मांग को ठुकरा दिया ?

अब यह विषय जनता में विचार विमर्श को एक बहस का मंच तो अवश्य ही देगा कि क्या संविधान में वर्णित शपथ ले कर भी कोई मंत्री उस शपथ का उलंघन अपने मानवीय मूल्यों को निभाने के लिए कर सकता है तो फिर संविधान। में वर्णित शपथ और उसको ग्रहण करने वाले मंत्री का क्या रिश्ता है और उसका औचित्य क्या और शपथ लेना क्यों उचित और आवश्यक है ?

SPSinghMeerut

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