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माननीय उच्चतम

पाठक नामा -
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बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री श्री वैंकेया नायडू वैसे तो बहुत ही सुलझे हुए सुसंस्कृत व्यक्ति है ! बहुत अच्छी हिंदी। धाराप्रवाह बोलते है । वहीँ कभी कभी तुकबंदी करने में हास्य का कारण भी बनते रहते हैं ! लेकिन वह सत्ता के हस्तिनापुर रूपी सिंहासन की रक्षा में। जब तब वह अपना आपा भी खो देते हैं? फिर तो उनके चेहरे पर किसी फूहड़ देहाती की तरह क्रोध और अक्खड़ पन साफ़ नजर आता हैं ? और इसी कड़ी में कल बिहार के सन्दर्भ में नीतीश कुमार ने एक व्यक्तव्य में कहा कि ” बीजेपी आरक्षण विरोधी है और उसे आरएसएस की लाइन पर ही चलना पड़ता है जो कि उसके लिए उच्चतम न्यायालय के समान है। ” इसके जवाब में वैंकेया जी पलटवार करते हुए कहा कि “जल्दी ही नीतीश कुमार के उच्चतम न्यायालय बन जाएंगे लालू प्रसाद यादव ? ”

इन दोनों नेताओं के व्यक्तव्यों से एक बात तो साफ़ है की दोनों ही की नज़रों में माननीय उच्चतम न्यायालय की कोई कीमत नहीं है ! जहां नीतीश कुमार ने उच्चतम न्यायालय की तुलना एक दक्षिणपंथी फासीवादी कट्टर हिंदूवादी संघठन से की है वहीँ वैंकेया नायडू ने उच्चतम न्यायालय की तुलना एक सजायाफ्ता आर्थिक अपराधी से करके उच्चतम न्यायालय की अवमानना का अपराध किया है ? अतः इस प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालय को स्वयं ही संज्ञान लेना चाहिए या फिर किसी स्वयंसेवी संस्था को आगेआना चाहिए ?

SPSingh/meerut

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