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अभी कुल जमा 16महीने ही व्यतीत हुए हैं अपने लोकप्रिय प्रधान मंत्री श्री नातेंद्र मोदी सत्ता संभाले हुए !जहां एक ओर घरेलू मोर्चे पर उनका विरोध विभिन्न राजनितिक पार्टियां ही नहीं उनके अपने संघटन आर एस एस के स्वदेसी मंच के लोग भी विरोध के सुर अलापने लगे हैं ! लेकिन स्वस्थ विरोध लोकतंत्र के विकास की पहचान ही है हमें इससे विचलित होने की कोई जरूरत भी नहीं है !जनतंत्र में सबको अपनी अपनेटरीके से कहने का अधिकार हैं और इसी अधिकार के कारण जनता अपनअधिकार प्रयोग करते हुए अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करती है अब यह बात और है की किसी को आलोचना लगती है और किसी को सुझाव ?
लेकिन समस्या तब उत्तपन्न होती है जब सरकार और नेताओं की आलोचना देश के बाहर से होने लगे ? अपनी ताज पोशी में मोदी जीने शार्क संगठन के सभी देशों को न्योता भेज कर उपस्थित होने का निमंत्रण भेज था जिसे सभी देशो की सरकारों ने स्वीकार किया और राष्ट्राध्यक्षों ने 26 मई 20014 को नई दिल्ली में उपस्थित होकर मोदी जी के सपथग्रहण समारोह की शोभा भी बधाई थी ! वैसे भी मोदी जी सभी पड़ोसियों से माथुर सम्बन्ध बनाएं रखने का भरसक पर्यत्न भी करते देखे जा सकते है जो उनकी विदेश यात्राओं के रिकार्ड से ही परिलक्षित होता है ?
अभी जब नेपाल में भूकंप आया तो सबसे पहले सहायता करने वालों में भारत अकेला देश था जिसकी इन डी आर एफ की टीम ने सबसे पहले बचाव कार्य किया और सभी प्रकार की भरपूर सहायता से भरे हवाई जहाजों ने विपरीतमौषम में उड़ान भर कर सहायता पहुँचाई ? लेकिन वाही नेपाल आज आँख दिखा रहा है ? जबकि वहपनि घरेलु समस्या से पार पाने में अक्षम है दोष भारत पर मढ़ रहा है क्या यह वास्तविकता है अगर नहीं तो फिर यह भारतीय कूटनीति की विफलता के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता ! भारत लाख चाहने पर भी पकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य नहीं बना पाया है ! क्या यहाँ भी कूटनीति की विफलता है ! चीन के साथ भी यही समस्या है ! क्योकिं मोदी ने शी जिन फिंग के साथ साबरमती के तट पर झूले में बैठप्यार की पींगे तो खूब बढ़ाई परंतु चीन अपनी बदमाशी से बज नहीं अत ! पाकिस्तान रोज रोज सीजफायर का उलंघन करता ही रहता है ?
तो क्या यह मोदी डॉक्ट्रिन की विफलता है क्योंकि अब तक देखने में आया है मोदी द्वारा घोषित सभी योजनाये कार्क्रम अपने आप में बहुत लोकलुभावन हैं नारों के रूप में अच्छे लगते हैं ? लेकिन धरातल पर सब कुछ उल्टा है !!अब लगता है देश ही नहीं पड़ोसियों का भी दिल मोदी से भर गया है ! क्योंकि पुरे मंत्री मंडल ही नहीं पूरी सरकार को ही अकेले मोदी ने अपने अकेले कंधे पर उठा रखा है तो या विफलता भी अकेले मोदी की ही मानी जसएगी ? तो क्या यह 16 महीनो में ही मोह भंग की शुरुआत है ! इसी लिये हम कह सकते है प्रचार प्रसार और इवेंट मैनेजमेंट के बावजूद अगर मोदी का जादू उतार पर है तो चिंता का कारण तो बनता ही है ? क्योंकि प्रशासनिक अनुभव के बावजूद भी कूटनीति और विदेश निति जब तक नही बदली जाती जब तक कोई विशेष कारण न हो ? अब यह तो सर्विदित है की मोदी सरकार का रिमोट कंट्रोल कहाँ है किसी से छुपा नहीं है ? और सबसे बड़ी बात तो यश है की रिमोट कंट्रोल पकडे हुएव्यक्ति को विदेश और कूट निति का कोई अनुभव है ? नैय्या तो डूबनी ही है? जब धमकी के पालन मै नेपाल अपनी जरूरतों के लिए चीनी खेमे में चला जायेगा ?
क्योंकि विदेश निति और कुटनीति न तो चाय के ठेलों पर बिकती है और न घृणा के बीज बोन वाली शाखाओं में बनती ह और न ही इसे कोई अंडर कवर एजेंट बना सकता है यह एक सतत प्रक्रिया के द्वारा अनुभवी और चतुर विदेश सेवा के अधिकारी एवं अनुभवी राजनितिक नेता बनाते है ? और यह नीतियां सरकार बदलने पर यकायक नहीं बदल जाती ? फिर भी जो प्रयोग श्री नरेंद्र मोदी जी ने किये है वे अब तक धरातल पर कब खरे उतरेंगे या नहीं कोई दवा नहीं कर सकता /? यह असमंजस की स्थिति देश हित में नहीं है क्योंकि वर्तमान सरकार का इरादा पुरे देश की राजनितिक, व्यसायिक, आर्थिक, विदेश, सामाजिक ,एवं घरेलु सभी नीतियों को बदलने का है अच्छी बात है देश आगे बढे नीतियां कोई बनाये / लेकिन जो गति aur
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