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चरखे पर चर्चा ?

पाठक नामा -
पाठक नामा -
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एक बहुत ही सूंदर सा शहर भव्य सड़कें बड़े बड़े चौराहे ! ऐसे ही एक चौराहे के कोने में एक कृशकाय बूढ़ा व्यक्ति जिसने एक चड्ढी उसके ऊपर इक सफ़ेद कमीज सर पर काली टोपी पहने वह व्यक्ति बार बार एक पोस्टर उठा कर खम्बे पर टांगने का प्रयत्न कर रहा था पर हर बार असफल हों रहा था ? हमने भी देखा बहुत से लोग आ जा रहे थे पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया जैसा अक्सर बड़े शहरों में होता है । हमने भी सोंचा शायद यह कोई विक्षिप्त व्यक्ति हैं लेकिन फिर भी हमसे रहा नहीं गया और हमने उस बुजुर्ग से पूंछा कि ” बाबा आप यह क्या कर रहे हो ?”
बुजुर्ग व्यक्ति बोला “बेटा मैं ये पोस्टर उपर टांगना चाह रहा हूँ पर क्या करूं मुझमे अब ताकत ही नहीं बची है ,,तुमही कुछ मदद करो यह पोस्टर उपर टांग दो”
हमने वह पोस्टर हाथ में लिया और देखा , अचानक मुंह से निकला अरे ये तो प्रधान मंत्री जी का फ़ोटो है जिसमे वे चर्खा चलाते हुए दिख रहे थे । हमने पूछा “बाबा आपने अच्छा किया राष्ट्रिय झंडे के साथ प्रधान मंत्री का फ़ोटो भी लोगो के पैरों में आजाता ” और हमनें उस पोस्टर को ऊपर खम्बे पर बाँध दिया । ”
फिर हने उस बुजुर्ग की तरफ देखा झुर्रियों वाला चेहरा आगे दांत टूटे हुए , तो ऐसा लगा की यह चेहरा तो जाना पहचाना सा लगता है तब हमने पूंछ ही लिया कि “बाबा ऐसा लगता है आप का चेहरा कुछ जाना पहचाना सा है आपका नाम क्या है आप कहाँ रहते हो?”
बुजुर्ग बोले “बेटा मेरा नाम जानकर क्या करोगे , अब तो मैं अपना नाम भी भूल चुका हूँ और मेरा कोई घर नहीं है पूरा भारत ही मेरा घर है लेकिन जब से लोगो ने मुझे राष्ट्रपिता कहना शुरू किया है तब से तो मैं ये भी भूल गया की मुझे लोग मोहन दास करम चंद गांधी कहते थे ? ”
हम बोले ” हाँ , लेकिन आपका ये हुलिया कैसे , आपतो केवल एक धोती पहनते थे क्या लिबास भी भूल गए ?”
बुजुर्ग बोले ” नहीं बेटा , ये संघी वेशभूषा तो नाथू राम गोडसे ने मुझे उसी दिन दे दी थी जब 30 जनवरी 1948 में उसने मुझे इस संसार से मुक्ति दिलाई थी , जो तुम देख रहे हो ये मेरी आत्मा है , जो आज अपने चरखे की दुर्दशा देख कर तड़प उठी थीं, मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं है की नाथू राम गोडसे ने मेरी मुक्ति का रास्ता हिंसा के द्वारा निकाला जिसका मैं जीवन पर्यन्त विरोध करता रहा, लेकिन आज जब मेरे प्रिय चरखे की हत्या मेरे ही प्रदेश के रहने वाले एक गुजरती ने कर दी , तो मेरी आत्मा को यह सहन न हो सका , यह बात अलग है कि चरखे का अविष्कार मैंने नहीं किया चर्खा भारत में बहुत पहले से था जबसे लोगो ने कपडे का अविष्कार किया था , मैंने तो केवल चरखे को भारतीय जनमानस के स्वाभिमान से जोड़ा था जिससे लोगों में अंग्रेजो की गुलामी से बाहर निकलने का जज्बा पैदा हो, ।” वे फिर बोले , बेटा ये तो बताओ की तुम कौन हो क्या करते हो ”
हम बोले बाबा क्या बताये आप के बताये रस्ते पर चलने की कोशिस कर रहे हैं पत्रकार हैं ”
तब वह आत्मा रूपी व्यक्ति ने हमे एक कागज का टुकड़ा दिया और कहा की बेटा अपने प्रधान मंत्री को कहना की उसने मेरी तस्वीर को बांया हिस्सा नोटों पर छाप कर मुझ पर एक अहसान किया है अब तक लोग मेरे दांये गाल पर ही चांटा मार रहे थे सब उनके सामने बांया गाल भी होगा अपनी भड़ास निकालने सकेंगे और हाँ ये कागज जो मैंने तुम्हे दिया है ये नोट का डिजाइन है आरबीआई के गवर्नर तक पहुंचा देना और कहना की , अबसे आगे नोटों पर मेरी तस्वीर न छापी जाय ”
जैसे जी हम वह कागज का टुकड़ा देखने लगे महात्मा जी की आत्मा गायब हो चुकी थी , हमने गौर से देखा की उस नोट के डिजाइन पर एक ओर नाथू राम गोडसे की तस्वीर हाथ में रिवाल्वर लिए क्रूर मुद्रा में साथ में वन्देमातरम लिखा हुआ और दूसरी ओर तिकोना भगवा झंडा और नागपुर स्थित आरएसएस के हेड क्वार्टर का चित्र । हमे इतना क्रोध आया कि कागज को फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर दिया और जैसे ही फेंका हमारे मुंह से निकल हाय , और ये क्या कि हम तो बिस्तर से निचे थे , तो क्या सपना देख रहे थे घडी देखी सुबह के सात बजरहे । साथ में दीवार पर टंगे कलेंडर में गांधी जी अपनी चिरपरिचित मुद्रा में मुस्करा रहे थे ।
एस पी सिंह, मेरठ ।

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